Biography of rajneesh osho in hindi
ओशो
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ओशो | |
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सितंबर 1 9 84 मे |
शनि ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश,[1] या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय , दार्शनिक ,विचारक, [2] और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे पूंजीवाद, व गांधी के कुछ विचारो ,[3][4][5]और हिंदू धार्मिक, इस्लाम, ख्रिश्चन के परंपरा और नियमों के प्रखर आलोचक रहे।[6] उन्होंने मानव कामुकता के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत तथा पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र रहे, हालाँकि बाद में उनका यह दृष्टिकोण अधिक स्वीकार्य हो गया।[7]
चन्द्र मोहन जैन का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था।[8] ओशो शब्द की मूल उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई धारणायें हैं। एक मान्यता के अनुसार, खुद ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता 'ओशनिक एक्सपीरियंस' के शब्द 'ओशनिक' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'सागर में विलीन हो जाना। शब्द 'ओशनिक' अनुभव का वर्णन करता है, वे कहते हैं, लेकिन अनुभवकर्ता के बारे में क्या?
इसके लिए हम 'ओशो' शब्द का प्रयोग करते हैं। अर्थात, ओशो मतलब- 'सागर से एक हो जाने का अनुभव करने वाला'। १९६० के दशक में वे 'आचार्य रजनीश' के नाम से एवं १९७० -८० के दशक में भगवान श्री रजनीश नाम से और १९८९ के समय से ओशो के नाम से जाने गये। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे, तथा भारत व विदेशों में जाकर उन्होने प्रवचन दिये।
रजनीश ने अपने विचारों का प्रचार करना मुम्बई में शुरू किया, जिसके बाद, उन्होंने पुणे में अपना एक आश्रम स्थापित किया, जिसमें विभिन्न प्रकार के उपचारविधान पेश किये जाते थे.
तत्कालीन भारत सरकार से कुछ मतभेद के बाद उन्होंने अपने आश्रम को ऑरगन, अमरीका में स्थानांतरित कर लिया। १९८५ में एक खाद्य सम्बंधित दुर्घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया और २१ अन्य देशों से ठुकराया जाने के बाद वे वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।
जीवन
[संपादित करें]बचपन एवं किशोरावस्था
[संपादित करें]ओशो का मूल नाम चन्द्र मोहन जैन था। वे अपने पिता की ग्यारह संतानो में सबसे बड़े थे। उनका जन्म मध्य प्रदेश में गाडरवारा जिले के अंतर्गत आने वाले कुचवाडा ग्राम में हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि तेैरापंथीदिगंबरजैन थे, ने उन्हें अपने ननिहाल में ७ वर्ष की उम्र तक रखा था। ओशो के स्वयं के अनुसार उनके विकास में इसका प्रमुख योगदान रहा क्योंकि उनकी नानी ने उन्हें संपूर्ण स्वतंत्रता, उन्मुक्तता तथा रुढ़िवादी शिक्षाओं से दूर रखा। जब वे ७ वर्ष के थे तब उनके नाना का निधन हो गया और वे गाडरवारा अपने माता पिता के साथ रहने चले गए।[9][10]
रजनीश बचपन से ही गंभीर व सरल स्वभाव के थे, वे शासकीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढा करते थे। विद्यार्थी काल में रजनीश बगावती सोच के व्यक्ति हुआ करते थे, जिसे परंपरागत तरीके नहीं भाते थे। किशोरावस्था तक आते-आते रजनीश नास्तिक बन चुके थे। उन्हें ईश्वर और आस्तिकता में जरा भी विश्वास नहीं था। अपने विद्यार्थी काल में उन्होंने ने एक कुशल वक्ता और तर्कवादी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। किशोरावस्था में वे आज़ाद हिंद फ़ौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी क्षणिक काल के लिए शामिल हुए थे।[3][11][12]
जीवनकाल
[संपादित करें]वर्ष 1957 में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर रजनीश रायपुर विश्वविद्यालय से जुड़े। लेकिन उनके गैर परंपरागत धारणाओं और जीवनयापन करने के तरीके को छात्रों के नैतिक आचरण के लिए घातक समझते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनका स्थानांतरण कर दिया। अगले ही वर्ष वे दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में जबलपुर विश्वविद्यालय में शामिल हुए। इस दौरान भारत के कोने-कोने में जाकर उन्होंने गांधीवाद और समाजवाद पर भाषण दिया; अब तक वह आचार्य रजनीश के नाम से अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे।
वे दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। उनके द्वारा समाजवाद, महात्मा गाँधी की विचारधारा तथा संस्थागत धर्म पर की गई अलोचनाओं ने उन्हें विवादास्पद बना दिया। वे मानव कामुकता के प्रति स्वतंत्र दृष्टिकोण के भी हिमायती थे जिसकी वजह से उन्हें कई भारतीय और फिर विदेशी पत्रिकाओ में "सेक्स गुरु" के नाम से भी संबोधित किया गया।[7]
१९७० में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। उनके विचारों के अनुसार, अपनी देशनाओं में वे सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया करते थे। १९७४ में पुणे आने के बाद उन्होनें अपने "आश्रम" की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता है.
तत्कालीन जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद १९८० में ओशो "अमेरिका" चले गए और वहां ओरेगॉन, संयुक्त राज्य की वास्को काउंटी में रजनीशपुरम की स्थापना की। १९८५ में इस आश्रम में सामुहिक फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद उन्हें संयुक्त राज्य से निर्वासित कर दिया गया.
मृत्यु
[संपादित करें]ओशो की मृत्यु १९ जनवरी १९९० को, ५८ वर्ष की आयु में, पुणे, भारत में आश्रम में हुई। मौत का आधिकारिक कारण हृदय गति रुकना था, लेकिन उनके कम्यून द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि अमेरिकी जेलों में कथित जहर देने के बाद "शरीर में रहना नरक बन गया था" इसलिए उनकी मृत्यु हो गई।[13] उनकी राख को पुणे के आश्रम में लाओ त्ज़ु हाउस में उनके नवनिर्मित बेडरूम में रखा गया था। ओशो की समाधि पर स्मृतिलेख है, 'न जन्में न मरे - सिर्फ 11 दिसंबर, 1931 और 19 जनवरी, 1990 के बीच इस ग्रह पृथ्वी का दौरा किया'।[14]
ओशो की मौत अभी भी एक रहस्य बनी हुई है और जनवरी 2019 में 'द क्विंट' के एक लेख में कुछ प्रमुख प्रश्न पूछे गए हैं जैसे "क्या ओशो की हत्या पैसे के लिए की गई थी?
क्या उनकी वसीयत नकली है? क्या विदेशी भारत के खजाने को लूट रहे हैं?[15] Osho Ka Chela Nk.aatmaa
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
[संपादित करें]हिंदी में प्रकाशित साहित्य
[संपादित करें]- उपनिषद पर केन्द्रित-
- सर्वसार उपनिषद
- कैवल्य उपनिषद
- अध्यात्म उपनिषद
- कठोपनिषद
- ईशावास्य उपनिषद
- निर्वाण उपनिषद
- आत्म-पूजा उपनिषद
- केनोपनिषद
- मेरा स्वर्णिम भारत (विविध उपनिषद-सूत्र )
- कृष्ण एवं गीता पर केन्द्रित-
- गीता-दर्शन (आठ भागों में अठारह अध्याय)
- कृष्ण-स्मृति
- महावीर पर केन्द्रित-
- महावीर वाणी (दो भागों में)
- जिन-सूत्र (दो भागों में)
- महावीर या महाविनाश
- महावीर : मेरी दृष्टि में
- ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
- बुद्ध पर केन्द्रित-
- एस धम्मो सनंतनो (बारह भागों में)
- अष्टावक्र पर केन्द्रित-
- अष्टावक्र-महागीता (छह भागों में)
- कबीर पर केन्द्रित-
- सुनो भई साधो
- कहै कबीर दीवाना
- कहै कबीर मैं पूरा पाया
- मगन भया रसि लागा
- घूंघट के पट खोल
- न कानों सुना न आँखों देखा (कबीर व फरीद)
- मीरा पर केन्द्रित-
- पद घुँघरू बाँध
- झुक आयी बदरिया सावन की
- दादू पर केन्द्रित-
- सबै सयाने एक मत
- पिव पिव लागी प्यास
- जगजीवन पर केन्द्रित-
- नाम सुमिर मन बावरे
- अरी, मैं तो नाम के रंग छकी
- दरिया पर केन्द्रित-
- कानों सुनी सो झूठ सब
- अमी झरत बिगसत कँवल
- सुन्दरदास पर केन्द्रित-
- हरि बोलौ हरि बोल
- ज्योति से ज्योति जले
- धरमदास पर केन्द्रित-
- जस पनिहार धरे सिर गागर
- का सोवै दिन रैन
- मलूकदास पर केन्द्रित-
- कन थोरे कांकर घने
- रामदुवारे जो मरे
- पलटू पर केन्द्रित-
- अजहूं चेत गंवार
- सपना यह संसार
- काहे होत अधीर
- लाओत्से पर केन्द्रित-
- ताओ उपनिषद (छह भागों में)
- शाण्डिल्य पर केन्द्रित-
- अथातो भक्ति जिज्ञासा (दो भागों में)
- झेन, सूफी और उपनिषद की कहानियाँ-
- बिन बाती बिन तेल
- सहज समाधि भली
- दीया तले अंधेरा
- अन्य रहस्यदर्शी-
- भक्ति सूत्र (नारद)
- शिव-सूत्र (शिव)
- भजगोविन्दम् मूढ़मते (आदिशंकराचार्य)
- एक ओंकार सतनाम (नानक)
- जगत तरैया भोर की (दयाबाई)
- बिन घन परत फुहार (सहजोबाई )
- नहीं सांझ नहीं भोर (चरणदास)
- संतो, मगन भया मन मोरा (रज्जब )
- कहै वाजिद पुकार (वाजिद)
- मरौ हे जोगी मरौ (गोरख)
- सहज-योग (सरहपा-तिलोपा)
- बिरहिनी मंदिर दियना बार (यारी)
- दरिया कहै सब्द निरबाना (दरियादास बिहारवाले)
- प्रेम रंग-रस ओढ़ चदरिया (दुलन)
- हंसा तो मोती चुगै (लाल)
- गुरु-परताप साध की संगति (भीखा)
- मन ही पूजा मन ही धूप ( रैदास)
- झरत दसहुँ दिस मोती (गुलाल)
- जरथुस्त्र : नाचता-गाता मसीहा (जरथुस्त्र)
- प्रश्नोत्तर-
- नहिं राम बिन ठांव
- प्रेम-पंथ ऐसो कठिन
- उत्सव आमार जाति, आनंद आमार गोत्र
- मृत्योर्मा अमृतं गमय
- प्रीतम छवि नैनन बसी
- रहिमन धागा प्रेम का
- उड़ियो पंख पसार
- सुमिरन मेरा हरि करैं
- पिय को खोजन मैं चली
- साहेब मिल साहेब भये
- जो बोलैं तो हरिकथा
- बहुरि न ऐसा दाँव
- ज्यूँ था त्यूँ ठहराया
- मछली बिन नीर
- दीपक बारा नाम का
- अनहद में बिसराम
- लगन महूरत झूठ सब
- सहज आसिकी नाहिं
- पीवत रामरस लगी खुमारी
- रामनाम जान्यो नहीं
- साँच साँच सो साँच
- आपुई गई हिराय
- बहुतेरे हैं घाट
- कोंपलें फिर फूट आईं
- फिर पत्तों की पाँजेब बजी
- फिर अमरित की बूंद पड़ी
- चेति सकै तो चेति
- क्या सोवै तू बावरी
- एक एक कदम
- चल हंसा उस देस
- कहा कहूँ उस देस की
- पंथ प्रेम को अटपटो
- मूलभूत मानवीय अधिकार
- नया मनुष्य : भविष्य की एकमात्र आशा
- सत्यम् शिवम् सुंदरम्
- रसो वै सः
- सच्चिदानन्द
- पंडित-पुरोहित और राजनेता : मानव आत्मा के शोषक
- ॐ मणि पद्मे हुम्
- ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
- हरि ॐ तत्सत्
- एक महान चुनौती : मनुष्य का स्वर्णिम भविष्य
- मैं धार्मिकता सिखाता हूँ, धर्म नहीं
- तंत्र पर केन्द्रित-
- संभोग से समाधि की ओर (चार भागों में)
- तंत्र-सूत्र (पाँच भागों में)
- योग पर केन्द्रित-
- पतंजलि: योगसूत्र (तीन भागों में)
- योग : नये आयाम
- गांधी पर केन्द्रित-
- भारत, गांधी और मैं (नवीन संस्करण यथावत रूप में 'अस्वीकृति में उठा हाथ' नाम से प्रकाशित)
- गांधी पर पुनर्विचार[16]
- विचार-पत्र-
- क्रांति-बीज
- पथ के प्रदीप
- पत्र - संकलन-
- अंतर्वीणा
- प्रेम की झील में अनुग्रह के फूल
- बोध-कथा-
- मिट्टी के दीये
- ध्यान एवं साधना पर केन्द्रित-
- ध्यानयोग: : प्रथम और अंतिम मुक्ति
- रजनीश ध्यान योग
- हसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम्
- नेति-नेति
- मैं कहता आँखन देखी
- समाधि कमल
- साक्षी की साधना
- धर्म साधना के सूत्र
- मैं कौन हूँ
- समाधि के द्वार पर
- अपने माहिं टटोल
- ध्यान दर्शन
- तृषा गई एक बूंद से
- ध्यान के कमल
- जीवन संगीत
- जो घर बारे आपना
- प्रेम दर्शन
- साधना-शिविर-
- साधना पथ
- ध्यान-सूत्र
- जीवन ही है प्रभु
- माटी कहै कुम्हार सूँ
- मैं मृत्यु सिखाता हूँ
- जिन खोजा तिन पाइयाँ (19 अध्यायों की इस पुस्तक के विभिन्न अध्याय भिन्न-भिन्न नामों से भी प्रकाशित हुए हैं। 1 से 6 अध्याय 'कुंडलिनी यात्रा', 7 से 11 अध्याय 'कुंडलिनी जागरण व शक्तिपात', 12 से 15 अध्याय 'कुंडलिनी और सात शरीर' एवं 'आप कहां हैं?' तथा 16 से 19 अध्याय 'कुंडलिनी और तंत्र' एवं 'संभोग-समाधि एक समान' के नाम से भी अलग-अलग प्रकाशित हैं।)[17]
- समाधि के सप्त द्वार (ब्लावट्स्की)
- साधना-सूत्र (मेबिल कॉलिन्स)
- असंभव क्रांति
- रोम-रोम रस पीजिए
- राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याएँ-
- देख कबीरा रोया
- स्वर्ण पाखी था जो कभी और अब है भिखारी जगत का
- शिक्षा में क्रांति
- नये समाज की खोज
- नये भारत की खोज
- नये भारत का जन्म
- नारी और क्रांति
- शिक्षा और धर्म
- भारत का भविष्य
- विविध-
- अमृत-कण
- जीवन रहस्य
- करुणा और क्रांति
- विज्ञान, धर्म और कला शून्य के पार
- प्रभु मंदिर के द्वार पर
- तमसो मा ज्योतिर्गमय
- प्रेम है द्वार प्रभु का
- अंतर की खोज
- अमृत की दिशा
- अमृत वर्षा
- अमृत द्वार
- चित चकमक लागे नाहिं
- एक नया द्वार
- प्रेम गंगा
- समुंद समाना बुंद में
- सत्य की प्यास
- शून्य समाधि
- व्यस्त जीवन में ईश्वर की खोज
- अज्ञात की ओर
- धर्म और आनंद
- जीवन-दर्शन
- जीवन की खोज
- क्या ईश्वर मर गया है।
- नानक दुखिया सब संसार
- नये मनुष्य का धर्म
- धर्म की यात्रा
- स्वयं की सत्ता
- सुख और शांति
- अनंत की पुकार
- अन्तरंग वार्ताएँ-
- सम्बोधि के क्षण
- प्रेम नदी के तीरा
- सहज मिले अविनाशी
- उपासना के क्षण
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ Gordon 1987, पृष्ठ 26–27
- ↑ Mehta 1993, पृष्ठ 83–154
- ↑ अआ FitzGerald 1986a, पृष्ठ 77
- ↑ Carter 1990, पृष्ठ 44
- ↑ Gordon 1987, पृष्ठ 26–27
- ↑ Mehta 1993, पृष्ठ 150
- ↑ अआ Joshi 1982, पृष्ठ 1–4
- ↑"कौन थे ओशो".
अभिगमन तिथि 16 February 2021.
- ↑ Mullan 1983, पृष्ठ 10-11
- ↑ Joshi 1982, पृष्ठ 22–25, 31, 45–48
- ↑ Gordon 1987, पृष्ठ 23
- ↑ Joshi 1982, पृष्ठ 38
- ↑"The Item - Yahoo News Archive Search". news.google.co.uk. अभिगमन तिथि 2021-06-29.
- ↑साँचा:Cite - Your selection newspapers and magazines.
- ↑Dikshit, Ashish (2016-08-24).Frank x walker history books
"29 Years On, Osho's Death Remains a Mystery". TheQuint (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-06-29.
- ↑https://www.sannyas.wiki/index.php?title=Bharat,_Gandhi_Aur_Main_(%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4,_%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80_%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82)
- ↑https://www.sannyas.wiki/index.php?title=Jin_Khoja_Tin_Paiyan_(%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%BE_%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%82)